Saturday, 19 September 2015


शिक्षा का अधिकार सब केलिए बराबर है 


किसी भी समुदाय या समाज की तरक्की तब तक संभव नही हो सकती जब तक की उसमे बृहत रूप से एकता ओर संगठनात्मक रूप से मजबूती नहीं आ जाती. अब यह बेसिक प्रश्न ये है कि यह सब कैसे संभव हो सकता है, और यह संभव होगा भी या नहीं. सिर्फ शिक्षा के लगातार बढ़ते हुए और क्रमबद्ध विकास से यह संभव है. शिक्षा वह साधन है  जो समाज को केवल शिक्षित ही नहीं करती बल्कि व्यक्ति के  पूर्ण आत्मीय विकास में भी अहम योगदान निभाती है. आज शिक्षा का अर्थ केवल साक्षरता से लिया जाता है, राज्य ओर देश के विकास को साक्षरता की कसोटी पर खरा नापा जाता है . जब वो स्वयं को  आत्मीक रुप से उन्न्त होगा वह पक्के  तौर पर देश  को भी उन्नति के मार्ग पर ले जा सकता है |

हमारे समाज मे सामाजिक रूप से प्रतिष्ठा के बाद भी शिक्षा की मूलभूत चरित्र काफी पिछड़ी हुई है, और जो हमे कही ना कही काफी हद तक हर एक मामले पीछे धकेलती है|
अतः आप सभी भाइयो से अनुरोध करता की हम अपने आस-पास जितना ज्यादा हो सके शिक्षा की जागरूकता और लोंगो को शिक्षित करने के लिए काम करते रहे |

आज  जब नौकरी की बात होती है तो सभी लोग सरकारी नौकरी पाना चाहते हैं यहाँ तक की वह  दामाद भी सरकारी ही चाहते हैं, लेकिन वहीं लोग अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाना चाहते. आख़िर ऐसा क्यों है? ऐसा क्या है कि एक साधारण टैक्सी चलाने वाले से लेकर एक उधोगपति  तक, सभी अपने बच्चे को प्राइवेट विद्यालय में ही पढ़ाना चाहते हैं.

पिछले कुछ सालों से गैर सरकारी (प्राइवेट) विद्यालयों की बाढ़ सी आ गयी है. लेकिन फिर भी इन विद्यालयों मे एडमिशन लेना किसी जंग लड़ने जैसा ही होता है. लोग ज्यादा से ज्यादा फीस और डोनेशन देकर भी इन गैर सरकारी विद्यालयों मे अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते है . आख़िर ऐसा क्या बात है इन स्कूलों में ? आज मुंबई जैसे बड़े शहर में महानगर पालिका द्वारा चलाये जाने वाले स्कूलों में बच्चों को आकर्षित करने के लिए जहाँ अनेक प्रकार की लुभावनी सामग्री जैसे किताबें, स्कूल बैग, गणवेश इत्यादि मुफ़्त दिए जातें हैं और फिर भी इन स्कूलों मे बच्चो की संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है , और वहीं पर गैर सरकारी और एन. जी. ओ. के स्कूलों की तादात बढ़ती जा रही है.

जो पैसेवाले लोग  हैं वे तो डोनेशन देकर, और कुछ हैं जो कहीं से भी इंतज़ाम करके किसी तरह निजी स्कूलों मे अपने बच्चे का एडमिशन ले लेते हैं और जो ग़रीब हैं वे लोग महानगर पालिका के स्कूलों की बजाय एन.जी.ओ. के स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना पसंद करते है. क्योंकि सभी माँ बाप अपने बच्चे को अच्छी से अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं. और अगर यही हाल रहा तो कुछ समय बाद ही महानगर पालिका के स्कूलों का अस्तितव ही ख़त्म हो जाएगा. और कहीं कहीं तो महानगर पालिका के स्कूलों में ही एन. जी. ओ. को स्कूल चलाने की अनुमति दे दी गयी है आर्थात महानगर पालिका स्वयं अपनी जड़े काटने पर तुली हुई है.

हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा आया फ़ैसला स्वागत योग्य है. क्योंकि शिक्षा, जो कि हर एक बच्चे का मूलभूत अधिकार है उस पर राजनीति होना देश और समाज के भविष्य के साथ खिलवाड़ करना है. यही वजह है कि आज लोग स्कूल को एक व्यवसाय की तरह चला रहें हैं जहाँ स्कूल प्रबंधन का बच्चों की पढ़ाई पर तो ध्यान कम रहता है लेकिन किताबों, अक्टिविटी फीस और एजुकेशनल टूर के नाम पर अभिभावकों से मोटी रकम ली जाती है. स्कूल मे मूलभूत सुविधाओं पर प्रबंधन का ध्यान नहीं होता है और आज भी ऐसे स्कूल है जहाँ बच्चों को खेलने के लिए मैदान नहीं हैं फिर भी ऐसे स्कूलों को मान्यता मिली हुई है.


अब समय आ गया है कि, देश भर के सभी स्कूलों मे एक समान शिक्षा पद्धति लागू की जाय और सभी स्कूलों कक्षा एक से दसवीं तक की पढ़ाई निशुल्क दी जाय. और सरकारी व महानगर पालिका के स्कूलों का प्रबंधन को दुरुस्त करके नयी और योग्य पद्धति लागू की जाए ताकि जिससे कि बच्चों का सर्वान्गिण विकास हो सके.

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